बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी …

दोस्तों, इस तरह से कुछ लिखना, एक नयी शुरुआत होती है और इस शुरुआत की शुरुआत करने जा रही हूँ मैं! वैसे हर इन्सान कुछ न कुछ सोचता रहता है, उसकी कुछ योजनाएं, कल्पनाएँ होती हैं, कुछ छोटी बड़ी आशाएं होती हैं और इन सबके साथ, इन सबका साथ पाकर वह कम करता रहता है. उन आशाओं, सोच, योजनाओं, कल्पनाओं को वास्तविकता में उतरने के लिए प्रयासरत, संघर्षरत रहता है. कभी वे आशाएं, कल्पनाएँ वास्तविकता में उतरती हैं तो कभी बहुत संघर्ष के बाद हाथ आ जाती हैं तो कभी कितनी भी कोशिशों के बावजूद कुछ भी नहीं मिल पाता. जब आशाएं, कल्पनाएँ वास्तविकता में उतरती हैं तो इन्सान का खुश हो जाना जायज है, जब संघर्ष और प्रयासों के बाद सफलता मिलती है तब ख़ुशी का परचम कुछ ज्यादा लहराता है लेकिन जब अथक और निरंतर प्रयासों, संघर्षों, के बाद भी हाथ कुछ नहीं लगता तब इन्सान सोचता है कि यह क्या हो रहा है? यह ऐसा क्यों हो रहा है?

लेकिन वह हर नहीं मानता. अपनी आशाओं,कल्पनाओं को वास्तविकता में उतारने की उसकी कोशिश जरी रहती है. फिर कोशिश, फिर प्रयास! बारबार कोशिश, बारबार प्रयास और बारबार असफलता! आपने कभी दिवार पर चढाने की कोशिश में दिवार से बार बार फिसलती चींटी को देखा है? कितनी बार पता नहीं लेकिन वह लगी रहती है. अंतत: वह पल आ जाता है कि उसे दिवार पर चढाने में कामयाबी मिल जाती है. फिर चढते चढते वह अपने वांछित स्थान पर जा पहुंचती है. बार-बार फिसलने से चींटी दिवार पर चढ़ना नहीं छोड़ती. हम इंसानों की बात थोड़ी अलग होती है. जब दो-चार बार प्रयास करने के पश्चात् भी इन्सान को जब उसकी कल्पनाओं और आशाओं के अनुरुप सफलता नहीं मिलती तब उसे लगता है कि उसकी किस्मत ख़राब है, जो उसका साथ नहीं दे रही है. ऐसे में या तो निराशा या अवसाद उसे घेर लेता है या फिर यदि वह ज्यादा उर्जावान हो तो अपनी कोशिशों, प्रयासों में परिवर्तन लाकर, दूसरे तरीके से सफलता हासिल करने की कोशिश करता है. कभी कभार सही तरीके से नहीं तो गलत तरीके से ही सही लेकिन सफलता हासिल करने की भी उसकी प्रवृत्ति रहती है. कभी कभी सही तरीके के प्रयासों से जब सफलता नहीं मिलती, निराशा भी उसे घेरने लगाती है, डिप्रेशन, तनाव, कुंठा आदि बातों का वह शिकार बन जाता है. कभी अवसाद ग्रस्त होकर आत्महत्या की कोशिश भी वह करता है.यदि उस कोशिश में वाह सफल हो जाता है तो फिर ईश्वर की दी हुई जिंदगी से वह भाग जाता है और एक कायर इन्सान की तरह चला जाता है. दुनिया उसे उसी अंदाज में याद रखती है. यदि आत्महत्या की कोशिश में उसे सफलता नहीं मिलती तो फिर भगवान ही मालिक! न घर का न घाट का!

गलत तरीके से कोशिश कर यदि इन्सान को सफलता मिलती है तब वह सफलता उसे कहाँ तक और कितनी ख़ुशी दे सकती है?उस सफलता के बाद इन्सान यदि चैन से सो नहीं सकता या फिर उस सफलता का जश्न खुले आम मना नहीं सकता तब उस सफलता क क्या मायने?

लेकिन एक बात उतनी ही सही है, हम इंसानों को सफलता का लालच हरदम रहता है. सफलता पाना, उसे संजोना और उस पर इतराना, हमारा शगल होता है. लेकिन जिंदगी के हर मोरचे पर जिसतरह हर बात आसानी से नहीं मिलती, ठीक उसी तरह सफलता भी आसानी से कहाँ मिलती है? जिन्हें आसानी से सफलता मिलती है, शायद उनका भाग्य चाँद सितारों सा चमकता होता होगा. लेकिन प्रयासों में दम हो तो कोई भी चीज़ हासिल होती है, यह बात भी उतनी ही सच है. आपके प्रयासों में उर्जा, शक्ति, लगन और इमानदारी हो, आपके दिल में उस सफलता को पाने की ललक हो और लगन से आप अपने प्रयासों को अंजाम देते हो तो, एक, दो, तीन, चार बार आप असफल हो सकते हो लेकिन पांचवीं बार आपके प्रयासों की उर्जा, लगन और ईमानदारी अवश्य आपको सफलता दिलाएगी. धीरज रखना और उस चींटी की तरह लगे रहना, इसलिए आवश्यक हो जाता है.

यह मेरा इस तरह से कुछ लिखना, ऐसा लिखना, यह भी मेरा पहला प्रयास है. इस तरह से पहली बार मिल रही हूँ आप सबसे! यह शुरुआत है, एक नए संवाद की! इस संवाद में मैं चाहती हूँ, आप भी मेरे साथ शामिल हो जाएँ क्यों कि संवाद तभी सार्थक होता है जब समान स्तर पर उतरकर एक दूसरे के साथ बतिया जाएँ. यह शुरुआत है एक नए आदान प्रदान की! यह एक नयी पहल है! इस पहल के बाद यहाँ फिर एक बार नयी बातें आएगी, नयी गुफ्तगू होगी, नयी शेयरिंग होगी,सोच-विचारों, शब्दों, वाक्यों, भाषाओँ की रवानी होगी. यहाँ नए लोग होंगे-उनकी बातें होंगी, दुनिया जहाँ की नयी, अनूठी बातों के बारे में सोचा जाएगा. यात्राएं, खान-पान, परंपरा,संस्कृति, हम-आप मिलकर बहुत कुछ कहेंगे, सुनेंगे और बहुत गप-शप लगाएँगे. आप की बतकही, मेरी बातें यूँ ही चलती रहेंगी…और जब बातें निकलती है …तब वे दूर तलक जाती है…हमें दूर तलक ले जाती है. तो चलिए, हम एक नयी यात्रा पर निकलते हैं…बातों की यात्रा…लोगों की यात्रा…शब्दों की यात्रा…हमारी-आपकी यात्रा…आपका सहयोग, आपकी बातें, आपका समर्थन…यह बात दूर तलक जाएगी…मुझे यकिन ही नहीं पूरा भरोसा है.

3 Comments

  • अनिल व्यं. शे, सांवत Posted October 12, 2019 9:41 am

    बहुत ही समर्पक शिर्षक और उतना ही समर्थ लेखन और विचार. चिंटीकी बत लेकर कहाँ से कहाँतक पहुंची आप! सच है कोशिशोंकी कोई आयु नहीं होती. कोशिश करते रहें जबतक मंझिल हासिल ना हो. जय आपकी ही है.
    सुलभाजी, लिखती रहिये. बहुत समर्थ लेखन है आपका.

  • Lily Posted October 12, 2019 11:51 am

    बात, आपकी लेखनी से निकली और मेरे जेहन तक पहुँची। बहुत ही व्यवहारिक कहा आपने । इच्छाओं का पनपना और उन्हे पूर्णता देने का प्रयास, सफल असफल होने का भय, बहुत सारे सकारात्मक/नकारात्मक मनोभावों की उधेड़ बुन के साथ मंज़िल तक पहुँचना वाकई एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। पा लेने के जश्न या खुशी की सीमावधि शायद इतनी लम्बी ना हो ,क्योंकि सुखद पल क्षण में बीत जाते हैं। इसीलिए तो हम स्मृतियों को सहेजने की जुगत भी लगाते हैं। ताकि देर तक सफलता के उत्सव का रसास्वादन कर पाएं।
    बहुत प्रेरणाप्रद आलेख आपका! हर मन की मनबात ! कुछ मुझे भी जोड़ने का मन कर ही गया।
    साधुवाद आपको????

  • Prachiti Bane Posted October 14, 2019 5:55 pm

    Pyaari Sulabhaji, waise toh humari aur aapki pehchaan nayi nahi. Hum humeshase aapke prashansak Rahe Hain or humesha rahenge, bass rab se yehi Dua he ki aap badhte raho aur Tarakki karte raho.

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